बाल विवाह
बाल विवाह बच्चों के अधिकारों(बाल अधिकार
) का उल्लंघन है, क्योंकि इस प्रथा के कारण बच्चे अपने
स्वाभाविक विकास एवं शिक्षा से वंचित हो जाते हैं। कम उम्र में शादी होने पर बालक व बालिका
की पढ़ाई बंद हो जाती है। लड़की के शिक्षित नहीं होने का असर पूरे परिवार पर पड़ता है।
अशिक्षित व्यक्ति अपने परिवार का अच्छी तरह से पालन-पोषण करने में असमर्थ रहता है। बाल
विवाह को रोकने एवं बाल विवाह को करने वाले लोगों को दंडित करने के लिए समय-समय पर
कानून बने हैं। वर्तमान में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 प्रभाव में है, जिससे बाल विवाह
को रोकने और बाल विवाह करने व कराने वाले को कठोर दंड से दंडित करने का प्राविधान है
विद्यालय प्रबन्ध समिति के सदस्य निगरानी करें कि यदि 18 वर्ष से कम उम्र की किसी लड़की
की शादी होती है तो उसके माता-पिता को समझायें एवं ऐसी शादी को रोकने का प्रयास करें
ताकि लड़की अपनी पढ़ाई पूरी कर सके, शादी के लिए मानसिक रूप से परिपक्व हो सके। बाल
विवाह को रोकने के लिए निम्न प्रावधान किए गए हैं:
> कोई भी व्यक्ति जिसे बाल विवाह की जानकारी हो, अपने जिले के न्यायिक मजिस्ट्रेट को
सूचना दे सकते हैं, जिनके द्वारा शादी को रोकने की कार्यवाही की जाती है।
- जिला कलेक्टर/पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों का भी बाल विवाह को रोकने के लिए
जरूरी कदम उठाने की जिम्मेदारी दी गई है।
> यह जानकारी थाने में दी जा सकती है।
बाल विवाह को रोकने के आदेश के बावजूद सम्पन्न की गई शादी शून्य होगी। यानि
कानून की नजर में वह शादी नहीं मानी जाएगी।
> सरकार द्वारा बाल विवाह निषेध अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। इनकी जिम्मेदारी बाल
विवाह रुकवाने की है।
> बाल विवाह को रोकने के आदेश दिए जाने के बाद भी अगर कोई बाल विवाह करवाता है
तो उसे दो साल तक की साधारण या कड़ी कैद या एक लाख रूपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं
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