स्वतंत्रता के पश्चात् स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा देसी रियासतो को यह स्वतंत्रता दी गई कि वे अपनी इच्छा से भारत या पाकिस्तान में विलय करे या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रख सकते हैं। 15 अगस्त, 1947 तक जम्मू-कश्मीर रियासत के प्रमुख हरि सिंह ने भारत और पाकिस्तान में से किसी में विलय न करके अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखना चाहते थे। लेकिन 1947 को पाकिस्तान के कबाइलियों ने पाकिस्तान सरकार के समर्थन से जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण कर दिया जिसके परिणामस्वरूप हरि सिंह ने भारत में जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर कश्मीर को भारतीय संघ में शामिल करने की औपचारिक घोषणा कर दी। इस अधिपत्र में यह प्रावधान किया गया है कि भारत सरकार केवल प्रतिरक्षा, विदेश तथा संचार के मुद्दे पर अधिकार होगा। भारतीय संविधान केअनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष प्रकार की स्थिति प्रदान की गयी है
1-जम्मू-कश्मीर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 1 में दी गई परिभाषा के अनुरूप भारतीय संघ का 15वां राज्य है, किंतु संविधान के वे सभी उपबंध, जो पहली अनुसूची से संबंधित राज्यों पर लागू होते हैं, वे संविधान के अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर पर लागू नही होते हैं।
2-जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय को तत्काल परिस्थिति के कारण भारत सरकार ने यह घोषणा की थी कि राज्य के लोग संविधान सभा के माध्यम से कार्य करते हुए यह अंतिम रूप से तय करेंगे कि राज्य का संविधान क्या होगा और भारतीय संघ की उसमें क्या अधिकारिता होगी।
3-जम्मू-कश्मीर राज्य के संविधान के अनुच्छेद 22 (7) के अधीनसंसद द्वारा बनाये गयी निवारक निरोध के विधान का विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य पर नहीं लागू होगा।
4-1986 के एक अध्यादेश द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 249 का विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य पर भी कर दिया गया। इसके अतिरिक्त 352 (राष्ट्रीय आपातकाल) और अनुच्छेद 360 के प्रावधान सहमति से ही उस पर लागू होंगे।
5-राज्य के संवैधानिक तंत्र असफल रहने पर राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति के परामर्श से राज्य की संपूर्ण विधायी व कार्यकारी शक्ति को अपने हाथ में ले सकता है।
6-भारतीय संविधान के भाग-4 में वर्णित नीति-निर्देशक सिद्धांत जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होते हैं।
7-संपत्ति के अर्जन, नियोजन व निवास से संबंधित मौलिक अधिकारजम्मू-कश्मीर राज्य के लोग को प्राप्त होंगें, जबकि केंद्र की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार जनता पाटी ने 44वै संविधान संशोधन अधिनियम,1978 द्वारा संपत्ति के अर्जन का मौलिक अधिकार को समाप्त कर
दिया गया है।
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